हिंदुस्तान में शायद ही ऐसा कोई होगा जिसे स्वामी विवेकानंद के बारे में ना मालूम हो। स्वामी जी अपनी आध्यात्मिक सोच के लिए पूरे संसार में प्रसिध थे। आज भी उनके जैसा कोई नहीं है। स्वामी विवेकानंद दुनिया को वेदों और शास्त्रों का उच ज्ञान देकर गए। स्वामी जी बहुत छोटी उम्र में इस दुनिया से चल बसे। जब उनका देहांत हुआ तब वह 40 वर्ष के भी नहीं थे। उनकी मृत्यु आज भी कईयों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं। हम बताते हैं की उनकी मौत कैसे हुई।
स्वामी विवेकानंद के शिष्य यह मानते हैं की स्वामी जी ने अपनी मर्ज़ी से समाधि ली और अपने शरीर का त्याग किया। परंतु वज्ञानिक आधारों को मानने वाले इस समाधि की संकल्पना पर बिलकुल भी यक़ीन नहीं करते और ख़ारिज करते हैं। उनका कहना है की ऐसी किसी बात पर यक़ीन करना सही नहीं है।
विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था और 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की उम्र में महासमाधि धारण कर उन्होंने प्राण त्याग दिए थे। सही कहें तो आज भी यह यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है की यह महापुरुष हमारे बीच में नहीं हैं।
गंगा नदी के तट पर विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण की अंत्येष्टि हुई थी। उसी जगह स्वामी जी का भी अंतिम संस्कार किया गया। वैज्ञानिक आधारों को मानने वालों के अनुसार महासमाधि के समय उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ था जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई।
स्वामी विवेकानंद ना सिर्फ वेदों के ज्ञाता थे, बल्कि 1893 में आर्ट इंस्टिट्यूट ऑफ शिकागों में पहले विश्व धर्मसभा सम्मेलन को संबोधित करने के बाद वो हिंदुत्व और वैदिक ज्ञान को वैश्विक स्तर पर पहचान देने के लिए भी खास तौर से जाने जाते हैं।
वो हिंदुत्व में आस्था रखते थे और इसे विश्व की सबसे उन्नत सभ्यता मानते थे जिसमें हर संस्कृति को अपनाने की खूबी है। उनका मानना था कि किसी भी धर्म में रहते हुए हम उसे ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, लेकिन ये उसे एक दायरे में बांध देता है और उसके विकास को अवरुद्ध कर करता है।
उनके अनुसार ये ठीक उसी तरह है जैसे कुएं में बैठा मेंढक यही समझता है कि दुनिया वहीं तक है, जबकि वास्तविकता में वो कुआं दुनिया का एक कोना भी नहीं है।
अगर मेंढक कुएं से ना निकले, तो संसार की खूबसूरती और उसकी तमाम अच्छी चीजों से वह वंचित रह जाएगा, ठीक उसी प्रकार धर्म को एक दायरे में मानकर चलना उसके विकास को बाधित करता है।
विवेकानंद बौद्ध धर्म से भी बहुत प्रभावित थे, लेकिन वो इसे हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा और इसका पूरक मानते थे। उनके अनुसार बुद्धिज्म के बिना हिंदुत्व अधूरा है और हिंदुत्व के बिना बुद्धिज्म अधूरा है।
अंग्रेजी शासन में जब मिशनरीज की स्थापना हो रही थी, स्वामी विवेकानंद ने भारत में राष्ट्रीयता और हिंदुत्व की भावना को एक प्रकार से पुनर्जीवित किया। रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना इसी का हिस्सा थे।
इसलिए 39 साल की छोटी उम्र में उनका मृत्यु को पाना ना केवल हिंदुत्व के लिए, वरन पूरे विश्व के लिए मानवता और योग के विकास की दिशा में एक बड़ा आघात था। शिकागो सम्मेलन को संबोधित करने के बाद अमेरिका समेत पूरी दुनिया में उनके अनुयायी बन चुके थे और सभी इस छोटी आयु में उनकी मौत का कारण जानना चाहते थे।
4 जुलाई, 1902 को अपनी मौत के दिन संध्या के समय बेलूर मठ में उन्होंने 3 घंटे तक योग किया। शाम के 7 बजे अपने कक्ष में जाते हुए उन्होंने किसी से भी उन्हें व्यवधान ना पहुंचाने की बात कही और रात के 9 बजकर 10 मिनट पर उनकी मृत्यु की खबर मठ में फैल गई।
मठकर्मियों के अनुसार उन्होंने महासमाधि ली थी, लेकिन मेडिकल साइंस इस दौरान दिमाग की नसें फटने के कारण उनकी मृत्यु होने की बात मानता है। हालांकि कई इसे सामान्य मृत्यु भी मानते हैं।
उनकी मौत का सच जो, लेकिन स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व एक वास्तविकता है। उनकी शिक्षा ना सिर्फ हिदुओं, बल्कि संपूर्ण विश्व को अपने ज्ञान से हमेशा ही सत्कर्म और धर्म का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।
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